श्रीमद्भागवत कथा के आखिरी दिन सुदामा चरित्र का सुन्दर वर्णन

श्रोता भावविभोर

कौशाम्बी सन्देश बब्बन बागी
प्रयागराज कोरांव नगर पंचायत कोरांव में श्रीमद्भागवत गीता के आखिरी दिन आशीष जी महाराज ने सुदामा जी के चरित्र का ऐसा विष्लेषण किया कि उपस्थित श्रोताओं की आंखें नम हो गई। आशीष जी महाराज ने कहा कि बाल्यावस्था के बाद वे अपने राज काज में सुदामा को भूल गए। पर स्वाभिमानी सुदामा कभी श्री कृष की स्तुति करने से खुद को रोक नहीं पाते थे और श्री कृष्ण कृष्ण कृष्ण का जाप करते हुए अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण करते रहे। कभी कभी तो ऐसा हो जाता कि वह अपने परिजनों सहित सप्ताह भर भूखे रह जातें और फिर भी उन्होंने ने अपने ईष्ट को नहीं भूले। बगैर भोग लगाएं वह कभी अन्न ग्रहण नहीं करते, एक दिन सुदामा ने अपनी पत्नी सुशीला को श्रीं कृष्ण की मित्रता की बात बताई। जिस पर सुशिला ने सुदामा को समझा बुझाकर श्री कृष्ण से मिलने के लिए कहा। किन्तु मित्र को भेंट करने के लिए सुदामा के पास कुछ भी नहीं था,तो सुशीला ने पड़ोस से चावल लेकर पोटली सुदामा को देने के लिए भेजा। सुदामा रहा पोह में द्वारिका धीस के पास पहुंचे और उन्होंने ने द्धारा पाल से लीला रथी श्री कृष्ण को मिलने की बात कहते हुए खुद को उनका मित्र बताते हुए मिलवाने की बात कही। जहां उनका उपहास किया गया किन्तु द्धार पाल श्री कृष्ण के पास जाकर कहता है।शीश पंगा न झगा जाने किस गांव से आए आपन नाम बतावत सुदामा, जैसे ही लीलाधारी सुदामा का नाम सुनते ही खुद नंगे पांव सुदामा से मिलने गए और वापस लाकर अपने नयनों के अश्रुओं से उनके पग को धोकर कुशल मंगल पूछा। और भाभी द्धारा दिया गया चावल की पुटकी से दो मुट्ठी चावल लेकर दो लोक दें दिया। पीछे खड़ी रूक्मणी ने तीसरे हाथ से चावल लेकर खुद खां लिया। इस प्रकार सुदामा की गरीबी दूर हो गई और लीला धारी ने बगैर सुदामा को बताएं सब कुछ दें दिया। जिसमें मुख्य जजमान सारों देबी व आयोजक धनश्याम दास केशरी व धर्मेंद्र केशरी सहित केशरी परिवार सम्मिलित रहा।

Kaushambi Sandesh
Author: Kaushambi Sandesh

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