
कौशांबी। जिले में खनन माफिया की बेलगाम गतिविधियों ने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। पभोसा घाट से प्रतिदिन ओवरलोड गाड़ियां बालू लादकर चारों दिशाओं में—गोराजू पश्चिम शरीरा, मंझनपुर, प्रतापगढ़, प्रयागराज—बेधड़क दौड़ रही हैं, लेकिन शासन-प्रशासन की चुप्पी से जनमानस में गहरी नाराजगी पनप रही है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, इन गाड़ियों की गतिविधियों का संचालन करने वाला एक संगठित नेटवर्क है, जिसे “त्रिपाठी रोड लाइंस” नामक ट्रांसपोर्ट एजेंसी से जोड़ा जा रहा है। क्षेत्र में यह चर्चा आम है कि यह गिरोह किसी बड़े राजनैतिक संरक्षण के तहत काम कर रहा है, जिसकी वजह से प्रशासनिक अमला भी कार्रवाई से बचता नजर आता है।
पुलिस और खनन विभाग की भूमिका पर सवाल
प्रश्न यह उठता है कि जब इतनी भारी संख्या में ओवरलोड वाहन सार्वजनिक सड़कों पर बेधड़क दौड़ रहे हैं, तो फिर जिला खनन विभाग, परिवहन विभाग और पुलिस की संयुक्त टीमें क्या कर रही हैं? क्या उन्हें इन वाहनों की आवाजाही नजर नहीं आती, या फिर कोई “ऊपर से दबाव” उन्हें कार्रवाई करने से रोक रहा है?
जनता में आक्रोश, सरकार की चुप्पी
स्थानीय लोगों का कहना है कि ओवरलोडिंग से सड़कों का बुरा हाल हो गया है और दुर्घटनाओं की संख्या में भी वृद्धि हुई है। ट्रकों की धमक से ग्रामीण इलाकों की शांति भंग हो रही है। बावजूद इसके, न तो वाहनों का चालान हो रहा है, न ही सीज़ करने की कार्यवाही की जा रही है।
माफिया की दबंगई, शासन की मजबूरी?
इस पूरे घटनाक्रम में एक बात साफ नजर आती है—खनन माफिया की “धौंस और खनक” ने प्रशासन को मौन रहने पर मजबूर कर दिया है। सूत्रों की मानें तो माफिया को शासन सत्ता में बैठे कुछ प्रभावशाली लोगों का संरक्षण प्राप्त है, जिसकी वजह से स्थानीय अफसर कार्रवाई करने में हिचकते हैं। अब सवाल यही है कि क्या शासन-प्रशासन इस मुद्दे पर आंखें खोलेगा? क्या ओवरलोडिंग और अवैध खनन पर अंकुश लगेगा? या फिर माफिया इसी तरह शासन की नाक के नीचे खुलेआम नियमों को ठेंगा दिखाते रहेंगे?

Author: Kaushambi Sandesh
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