महाकुंभ संवाद में यूनेस्को के निदेशक बोले – कुंभ मेला मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर

महाकुंभ 2025 के अंतर्गत संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश एवं प्रयागराज मेला प्राधिकरण के संयुक्त तत्वावधान में “महाकुंभ संवाद: भारत की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत” विषयक संगोष्ठी का आयोजन कला कुंभ परिसर, सेक्टर-7 में किया गया।

कार्यक्रम का उद्घाटन यूनेस्को के दक्षिण एशिया क्षेत्र के क्षेत्रीय निदेशक टिम कर्टिस एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. हेरम्ब चतुर्वेदी ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया।

अपने संबोधन में टिम कर्टिस ने कहा कि यूनेस्को ने 2017 में कुंभ मेले को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता दी। इससे पहले 1923 से इसके सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय प्रभावों की निगरानी की जा रही थी। उन्होंने कहा कि कुंभ मेला प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में विश्व को एक नई दृष्टि प्रदान करता है।

विशिष्ट अतिथि प्रो. हेरम्ब चतुर्वेदी ने कुंभ के ऐतिहासिक पक्ष को रेखांकित करते हुए कहा कि ह्वेन सांग के यात्रा विवरण में भी कुंभ मेले का उल्लेख मिलता है। उन्होंने कहा कि माघ स्नान की परंपरा पौष पूर्णिमा से शुरू होकर माघ पूर्णिमा को पूर्णता प्राप्त करती है और यह खगोलीय घटनाओं से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पर्व है।

कार्यक्रम में यूनेस्को के क्षेत्रीय निदेशक ने कला कुंभ में लगी कुंभ विषयक अभिलेख प्रदर्शनी का अवलोकन किया। उन्होंने इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे प्रयासों से कुंभ मेले की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को वैश्विक पहचान मिलेगी।

संगोष्ठी के बाद नीरज मिश्रा द्वारा प्रस्तुत सितार वादन ने उपस्थित दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

कार्यक्रम में मुख्य विकास अधिकारी, प्रयागराज गौरव कुमार एवं नोडल अधिकारी, संस्कृति विभाग, डॉ. सुभाष चंद्र यादव ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संयोजन डॉ. सुभाष चंद्र यादव एवं श्री राकेश कुमार वर्मा ने किया, जबकि संचालन श्री रामेंद्र सिंह द्वारा किया गया। मुख्य विकास अधिकारी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

इस अवसर पर प्रो. हरीश सिंह (एस.एस. खन्ना डिग्री कॉलेज), डॉ. रेफाक अहमद (ईश्वर शरण डिग्री कॉलेज), उपजिलाधिकारी सौरभ गुप्ता, डॉ. आलोक सिंह, डॉ. राजीव त्रिवेदी, श्रुति शुक्ला, राजीव रंजन, देवेश प्रताप सिंह, संदीप त्रिपाठी, राजू यादव सहित अनेक शिक्षाविद एवं गणमान्यजन उपस्थित रहे।

Kaushambi Sandesh
Author: Kaushambi Sandesh

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